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2013 के दुष्कर्म मामले की पृष्ठभूमि
2013 में स्वयंभू संत आसाराम बापू को जोधपुर, राजस्थान के उनके आश्रम में 16 वर्षीय नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। यह मामला पूरे देश में सुर्खियों में रहा, क्योंकि आसाराम के करोड़ों अनुयायी देशभर में फैले हुए थे। 2018 में जोधपुर की एक अदालत ने उन्हें भारतीय दंड संहिता और पॉक्सो (POCSO) एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई।
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य आधार पर दी जमानत
7 जनवरी 2025 को राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम बापू को उनके स्वास्थ्य के आधार पर अंतरिम जमानत दी। जस्टिस दिनेश मेहता और वINIT कुमार माथुर की खंडपीठ ने उन्हें 31 मार्च 2025 तक इलाज कराने के लिए जेल से अस्थायी राहत दी। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य दुष्कर्म मामले में पहले दिए गए अंतरिम जमानत आदेश के अनुरूप है।
स्वास्थ्य कारणों पर आधारित जमानत
आसाराम के वकीलों ने अदालत में उनके बढ़ती उम्र (86 वर्ष) और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला दिया। उन्होंने आयुर्वेदिक इलाज कराने की उनकी प्राथमिकता का उल्लेख करते हुए जोधपुर के उनके आश्रम में इलाज कराने की अनुमति मांगी। अदालत ने इस याचिका को मंजूरी देते हुए कई शर्तें भी लगाईं।
अदालत द्वारा लगाई गई शर्तें
अंतरिम जमानत की अवधि के दौरान आसाराम को निम्नलिखित शर्तों का पालन करना होगा:
- सार्वजनिक कार्यक्रमों पर रोक: उन्हें अपने अनुयायियों से समूह में मिलने, प्रवचन देने या मीडिया से बातचीत करने की अनुमति नहीं है।
- सुरक्षा प्रबंध: तीन सुरक्षा कर्मी उनकी गतिविधियों पर निगरानी रखेंगे। यदि वह जोधपुर के बाहर यात्रा करते हैं, तो सुरक्षा खर्चों का वहन आसाराम को स्वयं करना होगा।
- चिकित्सा उपचार का पालन: उन्हें डॉक्टरों द्वारा बताए गए चिकित्सा निर्देशों का सख्ती से पालन करना होगा।
जमानत के फैसले के प्रभाव
यह अंतरिम जमानत पहली बार है जब आसाराम 2013 में गिरफ्तारी के बाद जेल से बाहर आएंगे। हालांकि, यह जमानत केवल स्वास्थ्य आधार पर दी गई है और उनके खिलाफ लगे आरोपों से मुक्त होने का संकेत नहीं है। इस मामले में उनकी अपील और अन्य कानूनी प्रक्रियाएं अभी भी अदालत में लंबित हैं।
कानूनी प्रक्रिया का समयक्रम
निष्कर्ष
राजस्थान हाईकोर्ट द्वारा आसाराम बापू को दी गई अंतरिम जमानत यह दर्शाती है कि न्यायपालिका स्वास्थ्य और उम्र जैसे मानवीय पहलुओं को भी ध्यान में रखती है। हालांकि, अदालत द्वारा लगाई गई शर्तें यह सुनिश्चित करती हैं कि कानून और व्यवस्था का पालन हो। आसाराम का मामला यह दर्शाता है कि उच्च-प्रोफ़ाइल मामलों में भी भारतीय न्याय प्रणाली गंभीर और संतुलित तरीके से काम करती है।