जंतर-मंतर पर महिलाओं का विरोध प्रदर्शन

Kuki Womens Protest at Jantar Mantar जंतर-मंतर पर कुकी महिलाओं का विरोध प्रदर्शन: मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग

मणिपुर में हालिया हिंसा और सांप्रदायिक तनाव के बीच, दिल्ली में जंतर-मंतर पर एक शक्तिशाली विरोध प्रदर्शन हुआ। इस विरोध प्रदर्शन में लगभग 500 कुकी-जोमी महिलाओं ने भाग लिया, जिन्होंने राज्य में शांति बहाल करने के लिए तत्काल उपाय के रूप में राष्ट्रपति शासन (संविधान की अनुच्छेद 356) लगाने की मांग की।

विरोध प्रदर्शन का कारण: मणिपुर में अशांति

मणिपुर कई वर्षों से मेइतेई और कुकी-जोमी समुदायों के बीच जातीय संघर्षों का सामना कर रहा है। मई 2019 में हुई ताजा हिंसा ने राज्य में तनाव को और बढ़ा दिया। विरोध प्रदर्शन करने वाली महिलाओं का आरोप है कि राज्य सरकार इन संघर्षों को रोकने में नाकाम रही है, जिससे निर्दोष लोगों की जान चली गई है और संपत्ति का नुकसान हुआ है।

कुकी-जोमी समुदाय का दावा है कि उन्हें मेइतेई बहुसंख्यक समुदाय द्वारा लगातार हाशिए पर रखा जाता है और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है। उनका कहना है कि राज्य सरकार इन मुद्दों को निष्पक्ष रूप से संबोधित करने में विफल रही है, जिससे असंतोष और गुस्सा पैदा हुआ है।

जंतर-मंतर पर महिलाओं का विरोध प्रदर्शन

विरोध प्रदर्शन में शामिल महिलाओं ने जंतर-मंतर पर नारेबाजी की और तख्तियां दिखाईं, जिन पर राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग लिखी थी। उन्होंने केंद्र सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने और राज्य में शांति बहाल करने की अपील की। विरोध प्रदर्शन के दौरान महिलाओं ने यह भी मांग की कि हिंसा की निष्पक्ष जांच की जाए और दोषियों को कड़ी सजा दी जाए।

See also  अपने घर में लाएं सुविधा: जानिए कैसे पा सकते हैं नया PNG (IGL) कनेक्शन

कुछ महिलाओं ने मीडिया को बताया कि वे अपने घरों में सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं और उन्हें डर है कि हिंसा और बढ़ सकती है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति शासन लगाने से कानून-व्यवस्था बहाल करने और समुदायों के बीच भरोसा पैदा करने में मदद मिलेगी।

राष्ट्रपति शासन की मांग क्यों?

कुकी-जोमी महिलाएं राष्ट्रपति शासन की मांग इसलिए कर रही हैं क्योंकि उनका मानना है कि मौजूदा राज्य सरकार हिंसा को रोकने में सक्षम नहीं है। उनका आरोप है कि सरकार दोनों समुदायों के बीच संवाद स्थापित करने और शांति बहाल करने के लिए ठोस कदम उठाने में विफल रही है।

राष्ट्रपति शासन के तहत, राज्य सरकार को भंग कर दिया जाएगा और केंद्र सरकार राज्य का प्रशासन अपने हाथ में ले लेगी। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार मणिपुर में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होगी।

कुकी-जोमी महिलाओं को उम्मीद है कि राष्ट्रपति शासन लगाने से राज्य में हिंसा रुकेगी और दोनों समुदायों के बीच शांति बहाल होगी। उनका मानना है कि केंद्र सरकार राज्य सरकार की तुलना में अधिक निष्पक्ष होकर काम करेगी और तनाव को कम करने के लिए कदम उठाएगी।

मणिपुर में हिंसा का कारण

मणिपुर में जातीय संघर्षों के पीछे कई जटिल कारण हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • ऐतिहासिक असंतोष: मणिपुर में कुकी-जोमी समुदाय का दावा है कि उन्हें मेइतेई समुदाय द्वारा सदियों से हाशिए पर रखा गया है। उनका मानना है कि उन्हें भूमि के अधिकारों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक अवसरों से वंचित रखा गया है।
  • सामाजिक-आर्थिक असमानता: मणिपुर में मेइतेई और कुकी-जोमी समुदायों के बीच सामाजिक-आर्थिक असमानता भी एक बड़ा कारक है। कुकी-जोमी समुदाय का दावा है कि उन्हें शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच है। यह असमानता असंतोष और गुस्से को जन्म देती है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: कुकी-जोमी समुदाय का यह भी आरोप है कि उन्हें राज्य की राजनीति में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया जाता है। उनका मानना है कि उनकी आवाज नहीं सुनी जा रही है और उनकी चिंताओं को संबोधित नहीं किया जा रहा है।
  • भूमि विवाद: मणिपुर में भूमि विवाद भी जातीय संघर्षों का एक प्रमुख कारण है। दोनों समुदायों के बीच भूमि के अधिकारों को लेकर विवाद चल रहे हैं। ये विवाद अक्सर हिंसक झड़पों का कारण बन जाते हैं।
  • भ्रामक सूचना: सोशल मीडिया पर अफवाहों और भ्रामक सूचनाओं का प्रसार भी हिंसा को भड़काने में भूमिका निभा सकता है। ये अफवाहें समुदायों के बीच अविश्वास पैदा कर सकती हैं और हिंसक प्रतिक्रियाओं को जन्म दे सकती हैं।
See also  Lok Sabha elections 2024 in Delhi : दिल्ली में लोकसभा चुनाव: क्या रहेगा बंद और क्या खुला, जानें पूरी जानकारी

समाधान के लिए रास्ता

मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करने की जरूरत है। राज्य सरकार को दोनों समुदायों के बीच संवाद स्थापित करने और उनके बीच भरोसा पैदा करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। केंद्र सरकार को भी राज्य सरकार को समर्थन देना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कानून-व्यवस्था बनाए रखी जाए।

साथ ही, दोनों समुदायों के नेताओं को भी आगे आना चाहिए और शांति बनाए रखने का संदेश देना चाहिए। उन्हें अपने समुदायों के लोगों से हिंसा का सहारा न लेने और बातचीत के रास्ते पर चलने की अपील करनी चाहिए।

शिक्षा और जागरूकता भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। लोगों को यह समझने की जरूरत है कि जातीय संघर्ष किसी का भला नहीं करते हैं। बल्कि, इससे सभी को नुकसान होता है। स्कूलों और कॉलेजों में शांति और सद्भाव पर पाठ्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं।

अंत में, मणिपुर में शांति बहाल करने के लिए सभी पक्षों को मिलकर काम करने की जरूरत है। बातचीत, समझ और सहानुभूति के माध्यम से ही स्थायी शांति प्राप्त की जा सकती है।