नमामि शमिशं शिव स्तोत्रम् का अर्थ और महत्व

नमामि शमिशं शिव स्तोत्रम् का अर्थ और महत्व

शिव की महिमा: एक भक्ति गीत का अर्थ और महत्व

शिव – नाम सुनते ही हमारे मन में शांति, शक्ति और करुणा की झलक आ जाती है। भगवान शिव को विश्व के सर्वोच्च देवता माना जाता है। उनकी महिमा को प्रकट करने के लिए ऋषि-मुनि, संत और भक्तों ने कई स्तुतियाँ और मंत्र रचे हैं। आज हम इस दिव्य स्तुति को समझेंगे, जो शिव की अनंत शक्ति और करुणा को सरल शब्दों में बताती है। यह स्तुति न केवल शिव की विशिष्टताओं को दर्शाती है, बल्कि हमें उनकी शरण में जाने के लिए प्रेरित भी करती है।


शिव स्तोत्रम् स्तुति का अर्थ और गहराई

पहला छंद:

“नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्”

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इस छंद में शिव को निर्वाण (मोक्ष) का स्वरूप कहा गया है। वे सर्वव्यापी हैं, ज्ञान और ब्रह्म के रूप में विद्यमान हैं। वे निर्गुण (गुणों से रहित), निर्विकल्प (विचारों से परे) और निरीह (निष्क्रिय) हैं। वे चैतन्य के आकाश में विराजमान हैं और आकाश में निवास करते हैं। इस छंद में शिव को अनंत, अनिर्वचनीय और सबके ऊपर बताया गया है।


दूसरा छंद:

“निराकारमोंकारमूलं तुरीयं
गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसारपारं नतोऽहम्”

यहाँ शिव को निराकार (रूपरहित) बताया गया है। वे ओंकार के मूल हैं और तुरीय (चौथे आध्यात्मिक अवस्था) के स्वरूप हैं। वे ज्ञान से परे हैं और पर्वतों के स्वामी हैं। वे भयानक हैं, महाकाल हैं, काल (समय) के स्वरूप हैं और बड़े करुणालु हैं। वे गुणों के घर हैं और संसार को पार करने के लिए मार्गदर्शक हैं।


तीसरा छंद:

“तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं
मनोभूत कोटिप्रभा श्री शरीरम्
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा”

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शिव का रंग सफेद है, जैसे हिमालय की बर्फ। वे गहरे और शांत हैं। उनका शरीर अनगिनत सूर्यों की रोशनी से भी अधिक चमकता है। उनके सिर पर गंगा बहती है और उनके गले में चाँद की तरह चमकता है, जहाँ एक साँप लिपटा हुआ है।


चौथा छंद:

“चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि”

उनके कानों में झूलते हुए कुंडल हैं, उनकी आँखें बड़ी और सुंदर हैं। उनका चेहरा प्रसन्न है, उनका गला नीला है और वे बड़े करुणालु हैं। वे बाघ की खाल पहनते हैं और उनकी गर्दन में मुंड माला है। मैं उन प्रिय शंकर की भक्ति करता हूँ, जो सबके स्वामी हैं।


अंतिम छंद:

“प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्
त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्”

शिव भयानक, शक्तिशाली और अद्भुत हैं। वे अखंड (अटूट), अज (जन्मरहित) और करोड़ों सूर्यों के समान चमकदार हैं। उनके हाथ में त्रिशूल है, जो तीनों गुणों को नष्ट करने में सक्षम है। मैं उन भवानीपति (पार्वती के पति) की भक्ति करता हूँ, जो भाव से प्राप्य हैं।

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शिव की शरण में जाने का महत्व

यह स्तुति शिव की अनंत शक्ति, करुणा और महानता को सरल शब्दों में बताती है। इसके माध्यम से हम उनके प्रति अपनी भक्ति और आस्था को व्यक्त करते हैं। शिव न केवल एक देवता हैं, बल्कि वे हमारे जीवन के सभी पहलुओं में उपस्थित हैं। उनकी शरण में जाना ही सच्चा मोक्ष है।

ॐ नमः शिवाय!


आपके लिए एक विचार:

क्या आपने कभी शिव की स्तुति का महत्व समझा है? क्या आपके जीवन में शिव की करुणा का अनुभव हुआ है? अपने विचार हमें कमेंट में बताएं।

शिव की कृपा से आपका जीवन सदा आनंदमय रहे। 🙏

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