अहोई अष्टमी का पर्व: माताओं ने रखा पुत्रों के लिए व्रत, गाजियाबाद के भारत सिटी में श्रद्धा और उत्साह का माहौल

गाजियाबाद, भारत सिटी: अहोई अष्टमी का पर्व हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जिसे माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और समृद्धि के लिए मनाती हैं। यह पर्व विशेष रूप से पुत्रवती महिलाओं द्वारा रखा जाता है। इस दिन माताएं सूर्योदय से पहले उठकर व्रत शुरू करती हैं और सूर्यास्त के बाद अहोई माता की पूजा करती हैं।

क्यों मनाई जाती है अहोई अष्टमी?

अहोई अष्टमी का पर्व पुत्रों की सुख-समृद्धि और लंबी आयु की कामना के लिए मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अहोई माता स्त्रियों की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती हैं, विशेषकर जो माताएं संतान सुख की कामना करती हैं, वे इस व्रत को करती हैं।

अहोई व्रत की प्रक्रिया:

अहोई व्रत को सूर्योदय से शुरू करके रात तक रखा जाता है। व्रती महिलाएं दिन भर जल तक ग्रहण नहीं करतीं। शाम को अहोई माता की पूजा की जाती है, जिसमें दीवार पर अहोई माता का चित्र बनाकर, उनके समक्ष धूप-दीप जलाया जाता है। इसके बाद पूजा के लिए गेंहू के दाने, पानी और मिठाई का भोग लगाया जाता है। व्रती महिलाएं तारे देखने के बाद व्रत खोलती हैं।

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अहोई अष्टमी पूजा:

अहोई माता की पूजा शाम को की जाती है। महिलाएं मिट्टी या चांदी की अहोई माता की प्रतिमा स्थापित करती हैं और उनके समक्ष फल-फूल, मिठाई, और सिंघाड़ा चढ़ाती हैं। पूजा के दौरान व्रत कथा का पाठ किया जाता है जिसमें माता अहोई की महिमा का वर्णन होता है। इसके बाद सभी महिलाएं एक दूसरे को प्रसाद वितरित करती हैं।

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महिलाओं ने साझा किए अनुभव

गाजियाबाद के भारत सिटी में, महिलाओं ने बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ अहोई अष्टमी मनाई। दिल्ली न्यूज़ 18 से बातचीत में निशा चौहान, शिवाली त्यागी, पूनम राणा, अनुष्का शर्मा और रीमा पांचाल ने बताया कि उन्होंने अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखा। उन्होंने कहा, “यह त्यौहार हिंदू धर्म की खूबसूरती को दर्शाता है, जहाँ रिश्तों की अहमियत को महत्व दिया जाता है। हमने इस व्रत को पूरी श्रद्धा और उत्साह से मनाया, और यह पर्व हमें एकता और सामंजस्य का संदेश भी देता है।”

धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व

अहोई अष्टमी का पर्व केवल व्रत और पूजा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह माता-पुत्र के रिश्ते की गहराई और समर्पण को भी उजागर करता है। हिंदू धर्म में यह पर्व इस बात का प्रतीक है कि परिवार और रिश्तों का सम्मान कितना महत्वपूर्ण है। इस त्यौहार के माध्यम से हमें यह सीखने को मिलता है कि धर्म और संस्कृति के माध्यम से हम एकजुट होकर जीवन में सकारात्मकता और समर्पण का अनुभव कर सकते हैं।

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