नई दिल्ली: भारत की राजधानी दिल्ली अब केवल सत्ता और संस्कृति का केंद्र नहीं रही, बल्कि यह मेहनत और मेहनतकश लोगों की पहचान बन चुकी है। DelhiNews18.in द्वारा कराए गए एक हालिया ऑनलाइन सर्वे के मुताबिक, दिल्ली देश का सबसे मेहनती शहर बनकर उभरा है। इस रिपोर्ट में यह सामने आया है कि दिल्लीवासी न केवल लंबी शिफ्ट्स में काम करते हैं, बल्कि तीखी गर्मी, ट्रैफिक और शहरी भागदौड़ के बावजूद अपने पेशे और जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाते हैं।
इस सर्वे में देशभर के 10 प्रमुख शहरों के 10,000 से ज्यादा कर्मचारियों और कामगारों की राय शामिल की गई थी। सर्वे के मुताबिक, दिल्ली में औसतन एक व्यक्ति प्रति सप्ताह 55 घंटे काम करता है, जो देश में सबसे ज्यादा है।
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भारत के प्रमुख शहरों में औसतन कार्य घंटे (सप्ताह में)
क्रम | शहर | औसत कार्य घंटे/सप्ताह | कार्य करने वाले का प्रतिशत (50 घंटे+ प्रति सप्ताह) |
---|---|---|---|
1 | दिल्ली | 55 घंटे | 78% |
2 | मुंबई | 51 घंटे | 71% |
3 | बेंगलुरु | 48 घंटे | 67% |
4 | हैदराबाद | 47 घंटे | 63% |
5 | चेन्नई | 46 घंटे | 60% |
6 | पुणे | 45 घंटे | 58% |
7 | कोलकाता | 44 घंटे | 55% |
8 | अहमदाबाद | 43 घंटे | 53% |
9 | जयपुर | 42 घंटे | 51% |
10 | लखनऊ | 41 घंटे | 48% |
यह आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि दिल्ली न केवल काम करने के घंटों में सबसे आगे है, बल्कि यहां के लोग मानसिक और शारीरिक रूप से काम के लिए अधिक समर्पित भी हैं।
गर्मी में भी तपकर मेहनत करने वालों की कहानियाँ – दिल से जुड़े कुछ किस्से
1. सुधीर कुमार – डिलीवरी एजेंट (राजेन्द्र नगर, दिल्ली)
सुधीर सुबह 9 बजे से रात 10 बजे तक सड़क पर रहते हैं। तेज़ धूप हो या बारिश, रोज़ाना कम से कम 40 से 50 ऑर्डर डिलीवर करते हैं।
“गर्मी में हेलमेट पहनकर पसीने से तर हो जाते हैं, लेकिन घर चलाने के लिए यही ज़रिया है। लोग पानी मांगते हैं, मुझे तो समय भी नहीं मिलता,” सुधीर बताते हैं।
2. ऋषभ मल्होत्रा – टेक्नोलॉजी कंसल्टेंट (साउथ दिल्ली)
IT सेक्टर में काम करने वाले ऋषभ कहते हैं – “वर्क फ्रॉम होम के बावजूद कभी-कभी 14 घंटे लैपटॉप से चिपके रहना पड़ता है। दिल्ली की प्रोफेशनल लाइफ में ब्रेक्स कम हैं, पर सीख बहुत है।”
दिल्ली की मेहनत – देश के लिए प्रेरणा
दिल्ली के मेहनतकश लोगों की ये कहानियाँ सिर्फ आँकड़ों तक सीमित नहीं हैं। ये उस जज़्बे की मिसाल हैं जिसमें पसीना बहाकर सपने बुने जाते हैं। दिल्ली की सड़कों, मेट्रो स्टेशनों, दुकानों, ऑफिसों और घरों में हर दिन लाखों लोग इस शहर को जीवंत बनाए रखते हैं।
जहाँ एक ओर तकनीक काम को आसान बना रही है, वहीं दूसरी ओर दिल्ली जैसे शहरों में मेहनत का स्तर और समर्पण भी बढ़ रहा है। यह शहर उन लोगों का है जो “आराम हराम है” की सोच के साथ अपने कल को बेहतर बनाने में लगे हैं।